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Ekadhashi 2023 |

 16 फरवरी 2023 को फागुन माह के कृष्ण पक्ष में पढ़ने वाली एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इस एकादशी का शुभ मुहूर्त सुबहा 5:31 से है। ओर पारण का समय 17 फरबरी को सुबहा 6:15 से 8:30 तक है।


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विजया एकादशी |

हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। श्री हरि की अराधना करने से व्यक्ति को सभी तरह के पापों  से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती



 शत्रुओं का नाश करने वाली एकादशी विजया एकादशी का व्रत और कथा सुनने से मनुष्य के सभी शत्रु और पापों का नाश होता है।

वैदिक धर्म ग्रंथों के अनुसार जो साधक विजया एकादशी व्रत का पालन करते हैं, उन्हें अपने शास्त्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करने सभी पीड़ाएं दूर हो जाती हैं और व्यक्ति को मृत्यु के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।


इस दिन भगवान लक्ष्मी नारायण शालिग्राम भगवान माता तुलसी की पूजा की जाती है एकादशी के व्रत में माता तुलसी ककी 11 या इससे अधिक अपनी श्रद्धा के अनुसार परिक्रमा लगाई जाती है। माता तुलसी की परिक्रमा करने से शालिग्राम भगवान अति प्रसन्न होते हैं। और ऐसा करने से एकादशी व्रत पूर्णता सफल होता है।


 एकादशी का व्रत करने से जाने अनजाने में हुए। सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और ऐसा करने  वाला एकमात्र ऐसा व्रत है एकादशी एकादशी का व्रत करने से [  वाजपेई यज्ञ, गोदान, स्वर्णधाम भूमि दान, जैसे दानों का फल प्राप्त होता है। एकादशी का व्रत सभी सनातनी मनुष्य को एकादशी का व्रत  अवश्य ही  करना चाहिए।


एकायशी को चावल बिल्कुल भी नही खाना चाहिए एकादशी के दिन सभी अपराध चावल में रहते है एक इसके अलावा चना, मसूर, मटर इनका सेवन एकादशी को बिल्कुल भी न करे।


एकादशी के दूसरे दिन पारण जरूर करना चाहिए जो अनजाने -  मे जो भी हमसे भगवत' 'अपराध हो जाते है पारण करने से भगवत अपराध नही लगता है।

पारण मे तीन बार- ओम केशवाय नमः ,ओम नारायण नमः , ओम माधव आए नमः।

इन नामो को हाथ में  गंगा जल,चावल,तुलसी पत्र - लेकर  3-3 बार नाम लेकर पारण करना चाहिए।



Ekadashi vrat Katha ( Vijaya ekadashi vrat Katha )   

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विजया एकादशी |

             

विजया एकादशी

स्कंद पुराणमें इस एकादशी की महिमा का वर्णन किया गया है। महाराज युधिष्ठिर ने पूछा, "हे वासुदेव ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्षमें कौनसी एकादशी आती है ? कृपया आप मुझे बताईये ।”

भगवान श्रीकृष्णने कहा, “हे युधिष्ठिर ! एक बार कमलपर विराजमान ब्रह्माजी को नारदजीने पूछा, “हे सुरश्रेष्ठ ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में 'विजया' एकादशी आती है। उसकापालन करने से कौनसा पुण्य प्राप्त होता है इसके बारे में आप मुझे बताइये ।” ब्रह्मदेव ने कहा, "हे नारद! सुनो, मैं तुम्हे एक कथा सुनाता हुँ, जो सब पापोंका हरण करनेवाली है।

यह व्रत बहुत प्राचीन और पवित्र है। यह 'विजया' एकादशी राजाओंको विजय प्रदान करनेवाली है । बहुत पहले जब राजा रामचंद्र 14 वर्षों के लिए वन में गए थे, तो पंचवटी में सीता और लक्ष्मण के साथ निवास कर रहे थे । वहाँसे रावणने सीताहरण किया।

 इस दुखसे उन्हें व्याकुलता हुई । सीताजी की तलाश में वन-वन भटकते हुए उन्हे जटायु मिला जो मरणासन्न था । उसके पश्चात उन्होंने वनमें कबन्ध राक्षसका वध किया । सुग्रीवसे मित्रता करके श्रीरामचन्द्रजीने वानरसेना को संगठित किया ।

 हनुमानजी श्रीरामचन्द्रजी की मुद्रा लेकर लंका गए और सीताजी की तलाश करके लौट आए । वहाँसे लौटते ही लंकाकथन के पश्चात सुग्रीवसे अनुमति लेकर श्रीरामचन्द्रजीने लंका जाना निश्चित किया । सागरतीर आनेपर वे लक्ष्मणसे कहने लगे, "हे सुमित्रानंदन ! इस अगाध सागर में अनेक भयानक जीवजंतु है ।

इसे सुगमता से कैसे पार करे, कौनसा भी उपाय सूझ नही रहा है ।"
"लक्ष्मणने कहा, महाराज ! आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष पुरुषोत्तम है । आपसे कुछ भी छिपाना असंभव है।

इस द्वीप में प्राचीन काल से बकदाल्भ्य मुनि रहते है। पास में ही उनका आश्रम है । हे रघुनन्दन ! उन्हें इस समस्या का समाधान पूछते है ।”
लक्ष्मण के कथनानुसार प्रभु रामचंद्रजी मुनिवर्य बकदाल्भ्य के पास मिलने उनके आश्रम गए उन्हें सादर प्रणाम किया । तब मुनिवर्यने पहचाना कि यही परमपुरूषोत्तम श्रीराम है । अत्यंत आनंदपूर्वक उन्होंने पूछा, “श्रीराम, आपका आगमन किस हेतु हुआ ?"

रामचंद्रजीने कहा, “हे मुनिवर्य ! रावणका संहार करने मै यहाँ आया हूँ । कृपा करके यह सागर पार करनेका उपाय बताएँ ।”
बकदाल्भ्यजीने कहा, "हे श्रीराम ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की 'विजया' एकादशी के पालन से विजय मिलता है । हे राजन !

इस व्रतकी विधि इस प्रकार है । दशमीदिन सोने, चांदी, पीतल, तांबा अथवा मिट्टी के एक कलश की स्थापना करे । उसमें पानी भरके पत्ते डाले । उसपर भगवान् नारायण के सुवर्णमय विग्रहकी स्थापना करे । एकादशी के दिन प्रातः काल उठकर स्नान करे । उसके बाद पुष्पमाला, चंदन, सुपारी, नारियल अर्पण करके उस कलशकी पूजा करनी चाहिए।

 दिनभर कलश के सामने बैठकर कथा करनी चाहिए, साथही जागरण भी करना चाहिए । घी का दीपक जलाने से व्रतकी अखंड सिद्धी प्राप्त होती है । उसके पश्चात द्वादशी के दिन नदी या तालाब के किनारे उस कलशकी विधिवत पूजा करके वो कलश ब्राह्मण को दान करना चाहिए । महाराज कलश के साथ और भी बडे बडे दान करने चाहिए।

हे श्रीराम  आप इस व्रत का पालन कीजिए, इससे आपको विजय प्राप्त होगी ।"
ब्रह्माजी कहने लगे, “हे नारद! मुनिवर्य के कहेनुसार प्रभु श्रीरामचंद्रजीने 'विजया' एकादशी का व्रत किया । उस व्रत के प्रभाव से श्रीरामचंद्रजी विजयी हुए । हे पुत्र  इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को इस जीवनमें विजय प्राप्त होता है और अक्षय परलोक प्राप्त होता है !"

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "इस एकादशी का पालन करना चाहिए! इसका महात्म्य सुननसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।"

 एकादशी के दिन कौन से मंत्र का जाप करें ? 
एकादशी के दिन भगवान को प्रसन्न करने के लिए - 
 [ एकादशी के दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। ]





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